क्या अचिंत्य भेदाभेद सिद्धांत समस्त गीताभाष्य है?

दुर्भाग्य से अब तक श्रीमद्भगवद्गीता की जो सभी टीकाएं और बंगानुवाद प्रकाशित हुए हैं, प्राय सभी अभेद- ब्रह्म वादियों द्वारा रचित है; विशुद्ध भगवत भक्ति समस्त टीका या अनुवाद प्राय प्रकाशित नहीं हुए हैं। शंकर भाष्य और आनंद गिरि टीका संपूर्ण अभेद- ब्रह्मवाद से पूर्ण है। श्रीधर स्वामी की टीका ब्रह्मवाद से पूर्ण ना होने पर भी उसमें सांप्रदायिक शुद्धाद्वैतवाद की गंध है ।

                         श्री मधुसुदन सरस्वती की टीका सरस्वती की टीका जिस प्रकार भक्ति पोषक तत्व क्यों से पूर्ण है भक्तिपोषक वाक्य ले पूर्ण है, चरम उपदेशके स्थान पर उसी प्रकार कल्याण प्रद नहीं है। श्रीरामानुज स्वामी का भाष्य सम्पूर्ण भक्ति सम्मत है, किंतु हमारे देश में श्री श्री गौरांग महाप्रभु की अचिन्त्य-भेदाभेद शिक्षायोंसे पूर्ण गीताभाष्य के रूप में कोई टीका प्रकाशित न होनेपर विशुद्ध प्रेमभक्ति के अस्वदकोंका आनन्द नहीं बढ़ता है। इसके कारण हमने यत्नपूर्वक श्रीगौरंग-अनुगत अनु गुप्त महा महोपाध्याय भक्त शिरोमणि श्री विश्वनाथ चक्रवती महाशय की विरचित टीका का संग्रह क्र उसके अनुसार ‘रसिक जन’ नामक बंगानुबाद के साथ गीता शास्त्र को प्रकाशित किया। श्री बलदेव विद्याभूषण कृत एक गीताभाष्य है, जो श्रीमन महाप्रभु की shik शिक्षा सम्मत हैशिक्षा सम्मत है। बलदेव की टीका विचारपरक है, परंतु चक्रवर्तीमहाशय की टीका विचार और प्रीतिरस- दोनों विषयों में परिपूर्ण है। विशेषत: चक्रवर्ती महाशाय का विचार सरल है तथा उनकी संस्कृत भाषा भी सरल है।

                                                                                                        श्रील भक्ति विनोद ठाकुर