अन्नदा एकादशी

इस भाद्रपद कृष्ण-पक्षीय ‘अन्नदा’ एकादशी की कथा का ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णन हुआ है। प्रसंग इस प्रकार से है कि महाराज युधिष्ठिर के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण से इस भाद्रपद कृष्ण-पक्ष की एकादशी का नाम एवं महात्म्य पूछने पर भगवान बोले – सर्वपाप नाशिनी इस भाद्रपद मास की कृष्ण-पक्ष की एकादशी का नाम ‘अन्नदा’ एकादशी है। भगवान हृषिकेश की पुजा-अर्चना करते हुए इस व्रत को पालन करना चाहिए।

प्राचीन समय में सारी पृथ्वी पर एकछत्र राज्य करने वाले सत्यप्रतिज्ञ श्रीहरिश्चन्द्र नाम के एक चक्रवर्ती राजा थे। इन्हें अपने अनजाने में की गयी प्रतिज्ञा की रक्षा के कारण अपने राज्य से हाथ धोना पड़ा था। अंत में तो महाराज हरिश्चन्द्र जी की स्थिति यहाँ तक बिगड़ गयी कि उन्हें अपनी पत्नी, पुत्र एवं स्वयं अपने आप को भी बेचना पड़ा। हे महाराज युधिष्ठिर! इस पुण्यात्मा राजा ने एक चांडाल का नौकर बनने पर भी अपने सत्य पालन आदि धर्मों का त्याग नहीं किया। राजा हरिश्चन्द्र अपने स्वामी, जो कि शमशान घाट का चांडाल था, के आदेशानुसार शमशान में मुर्दों के कफन लेने लगे थे। इतना नीच कर्म करने पर भी राजा अपने सत्य से भ्रष्ट नहीं हुए। इस प्रकार चांडाल के यहाँ नौकरी करते-करते महाराज हरिश्चन्द्र जी का बहुत समय निकल गया।

एक दिन राजा बड़े दुःखी होकर सोचने लगे कि मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ? मुझे इस प्रकार के नीच कर्म से किस प्रकार मुक्ति मिले? राजा को कष्ट से व्याकुल जान कर एक दिन गौतम मुनि उनके समीप आये और सोचने लगे कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने दूसरों कि भलाई के लिए ही ब्राह्मणों की सृष्टि की है। अतः मुझे हरिश्चन्द्र को मिलना चाहिये तथा उन्हें इस मुसीबत से निकालना चाहिये।

मुनि को देखकर राजा ने नमस्कार किया और उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े होकर उन्हें अपनी समस्त दुःख की बातें एक-एक करके सुनाईं।

राजा की करुण-कथा सुनकर मुनिवर गौतम आश्चर्यचकित हो गये और उनहोंने कहा – हे राजन्! भाद्रपद मास की कृष्ण-पक्षीय ‘अन्नदा’ नाम की एकादशी बड़ी ही पुण्यदायिनी है तथा ये सभी प्रकार के पापों का नाश करने वाली है। आपके भाग्य से वह एकादशी का दिन नज़दीक ही आ गया है। आप इस दिन उपवास करके एवं रात्रि जागरण करते हुए इस व्रत का पालन करो। इसके फल से शीघ्र ही आपका सारा पाप नष्ट हो जायेगा। हे राजन्! आपके पुण्यों के प्रभाव से ही मैं आपके पास आया हूँ।

राजा को इस प्रकार उपदेश देकर गौतम ऋषि तत्काल अन्तर्ध्यान हो गए। राजा हरिश्चन्द्र जी ने मन ही मन उन अदृश्य गौतम जी को प्रणाम किया और उपदेशानुसार ‘अन्नदा’ एकादशी व्रत का यथाविधि पालन किया एवं व्रत के फल से वे समस्त पापों से मुक्त हो गये।

भगवान श्रीकृष्ण जी महाराज युधिष्ठिर जी को कहते हैं – हे राजन्! इस व्रत का ऐसा ही प्रभाव है कि जो कष्ट बहुत-सालों तक भोगने योग्य हैं, वह भी शीघ्र ही खत्म हो जाते हैं। इस व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चन्द्र ने अपनी पत्नी को वापिस पाया; यही नहीं, ये व्रत का ही प्रभाव था कि उनका मृत पुत्र भी जीवित हो उठा। तभी आसमान से देवता लोग दुंदुभि बजाने लगे एवं पुष्पवर्षा करने लगे।

‘अन्नदा’ एकादशी के प्रभाव से राजा हरिश्चन्द्र जी को अपना राज्य भी वापस मिल गया और वे अपने परिवार भाई-बन्धु, सभासद् एवं नगरवासियों के साथ राज्य का सुख लेने लगे व जीवन के अन्त में उन्हें अपने परिवार व बन्धु-बान्धवों सहित व अपने प्रिय पुत्र के साथ स्वर्ग कि प्राप्ति हुई। भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से कहा- हे राजन्, जो व्यक्ति इस अन्नदा एकादशी के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

(ये बात बिल्कुल सही है कि एकादशी का व्रत करने से भगवान श्रीहरि बड़े प्रसन्न होते हैं तथा वे मनुष्य का दुर्भाग्य, गरीबी व क्लेश समाप्त कर देते हैं परन्तु समझने वाली बात यह है कि जो भगवान श्रीहरि अपनी भक्ति से प्रसन्न होकर या हरि भक्ति के एक अंग एकादशी से प्रसन्न होकर हमारा दुर्भाग्य हमेशा-हमेशा के लिए मिटा सकते हैं; हमें हनुमान जी की तरह हर समय अपनी सेवा का सौभाग्य दे सकते हैं, अपना सखा बना सकते हैं; यहाँ तक कि अपने पिता-माता का अधिकार व मधुर रस तक का अधिकार प्रदान करके हमें धन्यातिधन्य बना सकते हैं, उनसे दुनियावी थोड़ी सी बेइज्ज़ती से बचने का सौभाग्य माँगना – कक्षा में अच्छे नम्बरों से पास होने की दुआ माँगना, किराये के मकान की जगह अपना मकान माँगना कहाँ की समझदारी है। जो भगवान बिना माँगे विभीषणजी को सोने की लंका का राजा बना सकते हैं, घर में अपनी सौतेली माता से बे-इज्ज़त हुए ध्रुव को विशाल साम्राज्य दे सकते हैं व उन्हें हमेशा अपने चरणों में स्थान दे सकते हैं, भयानक विपत्ति से गजेन्द्र की, द्रौपदी की व प्रह्लाद आदि भक्तों की रक्षा कर सकते हैं; यदि भगवान आपकी सुन ही रहे हैं या आप उन भगवान से प्रार्थना कर ही रहे हैं तो भगवान से उनकी अहैतुकी भक्ति माँगें, जिसके मिलने से सिर्फ आप ही नहीं, आपके सारे परिवार का व आपके कई जन्मों के पिता-माताओं का नित्य कल्याण हो जायेगा।

अतः यदि आप एकादशी करते हैं तो भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी की शिक्षाओं के अनुसार भगवान से एकादशी व्रत के बदले में दुनियावी सौभाग्य, गरीबी हटाना इत्यादि की प्रार्थना की प्रार्थना न करके उनकी नित्य-अहैतुकी भक्ति के लिए अर्थात् हमेशा-हमेशा हम परम-आनन्द के साथ अपने प्रभु की विभिन्न प्रकार से सेवा करते रहें, इस प्रकार की प्रार्थना करना। भगवान श्रीहरि से कहना – हे प्रभो!

‘न धनं न जनं न सुन्दरीं, कवितां व जगदीश! कामये।
मम जन्मनि जन्मनीश्वरे, भवताद्भक्तिरहैतुकी त्वयि॥’

इति भाद्रपद कृष्ण-पक्षीय ‘अन्नदा एकादशी’ महात्म्य समाप्त।