श्रीपुरुषोत्तम मास

(16 मई से 13 जून, 2018 तक)

चन्द्र-मास की गणना तथा सूर्य-मास की गणना में सामंजस्य बनाये रखने के लि‌ए बत्तीस महीनों में एक महीना छोड़ देना पड़ता है। उसी मास का नाम है — अधिमास या अधिक मास । अंग्रेज़ी महिनों में हम कभी फरवरी को 28 का गिनते हैं तो कभी 29 का ।

स्मार्तगणों ने इस अधिक मास को ‘मलमास’ कहकर त्याग दिया है। उन्होंने इसे मलिम्लुच मास , चोर मास अथवा मलिन-मास आदि नाम देकर घृणित बताया है। स्मार्त लोग इस महीने कोई भी शुभ कार्य नहीं करते ।
जबकि……..
परमार्थ – राज्य में अधिमास को हरि-भजनोपयोगी, सर्वाधिक श्रेष्ठ मास व पुरूषोत्तम मास बताया है क्योंकि ये मास जाकर भगवान् पुरूषोत्तम श्रीकृष्ण जी के शरणागत हो गया था , उसी से इसकी महिमा बढ़ी ।
इस पुरुषोत्तम मास में जो भक्तिपुर्वक भगवान् श्रीकृष्ण जी का अर्चन करते हैं, वे धन-पुत्र आदि का सुख भोगकर अंत में गोलोकवासी होते हैं।
पौराणिक प्रसंग के अनुसार द्रौपदी पुर्वजन्म में ‘मेधा’-ऋषि की कन्या थीं। दुर्वासा मुनि के द्वारा ‘पुरुषोत्तम-माहात्म्य’ सुनकर भी उन्होंने इस मास की उपेक्षा की थी, इसलि‌ए उस जन्म में कष्ट तथा द्रौपदी-जन्म में पाँच पतियों के अधीन हु‌ई थीं।

श्रीकृष्ण के उपदेश से पाण्डवों ने द्रौपदी के साथ पुरुषोत्तम-मास-व्रत पालन कर वनवास के सारे दुःखों से पार पाया था।
इस मास में दूसरों के बिस्तर पर मत सोयें तथा अनित्य विषयों पर चर्चा ना करें परनिन्दा सम्बन्धी बातचीत न करें। दूसरों का जूठा भोजन मत करें ।

गोवर्द्धनधरं वन्दे गोपालं गोप रूपिणं ।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम् ।

इस मंत्र को कम से कम 12 बार जपना चाहिए ।

इसके इलावा प्रतिदिन श्रीजगन्नाथ-अष्टकम् एवं *श्रीचौराग्रगण्य-अष्टकम्* भी अवश्य गाना या पढ़ना चाहिए ।

इस महीने में शहद , रा‌ई-सरसों-तिल तथा उनका तेल भी भोजन में प्रयोग नहीं होगा ।

पुरुषोत्तम मास में देवता, वेद, गुरू, गाय, व्रती, नारी, राजा और महापुरुषों की निंदा नहीं करनी चाहिए ।

जन्तु-जानवरों के अंगों से उत्पन्न चूर्ण, फलों में जम्बीर अर्थात्‌ एक विशेष प्रकार का नींबू, अनाज में मसूर व उड़द की दाल राजमा ,बासी अन्न, बकरी, गाय तथा भैंस के दूध के अलावा अन्य सभी दूध मना हैं ।

भक्त लोग ताँबे के पात्र में रखा घी, दूध , चमड़े में रखा जल, मशरूम, गाजर, बैंगन, लौकी, सजिना फली —इन सब का वर्जन करेंगे।

“ब्रह्मचर्यमधः शैयां पत्रावल्यांच भोजनम्‌।………. प्रकुर्यात पुरुषोत्तमे॥

इस महीने में ब्रह्मचर्य पालन, भूमि पर शयन तथा पत्तल में भोजन करना उचित है।

*”श्रीमद्‌भागवतं भक्त्या श्रोतव्यं पुरुषोत्तमे॥*
*तत्पुण्यं वचसा वक्तुं विधाता हि न शक्नुयात्‌।*

पुरुषोत्तम-मास में, भक्तिपूर्वक श्रीमद्‌भागवत-ग्रंथ श्रवण करेंगे। भागवत-श्रवण की महिमा तो विधाता भी नहीं कह सकते हैं।

*”कर्तव्यं दीप-दानंच पुरुषोत्तम-तुष्टये।*
*तिल-तैलेन कर्त्तव्यं सर्पिषा वैभवे सति॥*

पुरुषोत्तम भगवान की तुष्टि के लिये दीपदान करना कर्त्तव्य है।सामर्थ्य होने पर देसी घी का दीपक, नहीं तो तिल के तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करने का नियम है।
वैष्णवों से दीक्षित भक्त अपने-अपने आचार्यों के द्वारा निर्धारित *‘कार्तिक-मास-व्रत-पालन’*-के नियमानुसार *‘पुरुषोत्तम-व्रतपालन’* करते हैं ।
श्रीसनातन गोस्वामी जी ने निम्नलिखित नियम बताकर अपनी बात पूरी की —-

एवमेकान्तिनां प्रायः कीर्तनं स्मरणं प्रभोः।
कुर्वतां परमप्रीत्या कृत्यमन्यन्न रोचते॥

एकान्त कृष्ण-भक्तों को श्रीकृष्ण-स्मरण तथा श्रीकृष्ण-कीर्तन ही अत्यंत प्रिय है। प्रायः ही वे इन दो अंगों के अलावा और किसी अंग में व्यस्त नहीं होते हैं। परम प्रीति के साथ उक्त दोनों अंगों के पालन में इतना आग्रह है कि वे अन्य समस्त कार्यों में रुचि नहीं ले पाते ।
भगवान व्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण इस मास के अधिपति हैं। अतः अधिकमास सभी भक्ताें का प्रिय मास है ।