Gaudiya Acharyas

ठाकुर श्रीसारंग दास

      “व्रजे नान्दीमुखी यासीत् साद्य, सारंग ठकुर:।

     प्रह्लादो मन्यते कैश्चिन्मत पित्रा, स न मन्यते॥”

(गौ.ग.दी.172)

    श्रीशिवानन्द सेन के कनिष्ठ पुत्र कवि कर्णपुर जी ने स्वरचित श्रीगौर गणोद्देश दीपिका में इस प्रकार लिखा है – ब्रज में जो नान्दीमुखी थे, वही अब सारंग ठाकुर हैं। कोई-कोई महात्मा इन्हें प्रह्लाद कह कर मानते हैं परन्तु मेरे पिता का यह मत नहीं है।

  श्रीचैतन्य चरितामृत की आदि लीला के दसवें परिच्छेद में श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के पार्षदों के नामों का वर्णन हुआ है, उसमें ठाकुर सारंग दास जी के नाम का भी उल्लेख है-

 

      रामदास, कविदत्त, श्रीगोपाल दास।

        भागवताचार्य ठाकुर सारंग दास॥(चै॰च॰आ॰10/117)

    ठाकुर सारंग दास-शार्ङ्ग ठाकुर,शार्ङ्गपाणि व शार्ङ्गधर- इन तीनों नामों से भी जाने जाते हैं। ये नवधा भक्ति के पीठ स्वरूप श्रीनवद्वीप धाम के अन्तर्गत दास्य भक्ति के क्षेत्र श्रीमोदद्रुम द्वीप (मामगाछि) में वास करते थे। इन्होंने गंगा के किनारे किसी निर्जन स्थान में तीव्र भजन करके अलौकिक शक्ति प्राप्त की थी। भजन में विघ्न होने की आकांक्षा से, श्री सारंग ठाकुर का पहले शिष्य न बनाने का संकल्प था किन्तु महाप्रभु जी की बार-बार प्रेरणा के कारण वे शिष्य बनाने पर बाध्य हुए। श्रीगौड़ीय वैष्णव अभिधान में इस प्रकार लिखा है-

   श्रीदेवानन्द पण्डित प्रभु जी ने श्रीवास पण्डित के चरणों में अपराध किया तो श्रीमन्महाप्रभु जी जब उनकी भर्त्सना करके आ रहे थे तो रास्ते में सारंग ठाकुर जी से महाप्रभु जी का साक्षात्कार हुआ था। उस समय ही उन्होंने सारंग ठाकुर को अपना संकल्प परित्याग कर शिष्य बनाने का आदेश दिया।

    श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद जी ने चैतन्य चरितामृत के अनुभाष्य में सारंग ठाकुर के चरित्र महात्म्य वर्णन में लिखा है-

    श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के द्वारा आदेश प्राप्त करके, श्रीसारंग ठाकुर जी ने संकल्प लिया कि आगामी कल को प्रात: काल वे जिसको भी देखेंगे, उसी को ही शिष्य बना लेंगे। घटनाक्रम के दूसरे दिन प्रात: काल भागीरथी में स्नान के समय, उनके पैरों में किसी मुर्दे का स्पर्श हुआ। उन्होंने उसी को पुनर्जीवन प्रदान करके उसे अपना शिष्य बना लिया। यह शिष्य ही श्रीठाकुर मुरारी के नाम से प्रसिद्ध हुए। श्रीसारंग के नाम के साथ ‘मुरारी’ युक्त होने पर इनका शार्ङ्ग मुरारी नाम हुआ। 

  श्रीगौड़ीय वैष्णव अभिधान की विवृति से ज्ञात होता है कि मुरारी नामक एक बालक की साँप के डसने से मृत्यु हो गई थी और उस समय की प्रथा के अनुसार उसके माता-पिता ने उस पुत्र को गंगा जी में प्रवाहित कर दिया। श्रीसारंग ठाकुर जी ने उस मृत बालक को दीक्षा-मन्त्र प्रदान करके जीवित कर दिया। इसलिये इनका नाम हुआ सारंग मुरारी। श्रीसारंग ठाकुर की कृपा से सारंग मुरारी ने भी शक्तिशाली आचार्य के रूप में ख्याति प्राप्त की थी।

    श्रीसारंग मुरारी जी की वंश-परम्परा के लोग अब शव् नामक ग्राम में वास करते हैं। सारंग ठाकुर जी की प्राचीन सेवा मामगाछि ग्राम में विद्यमान है। वहाँ के एक प्राचीन बकुल वृक्ष के सामने एक मन्दिर निर्मित हुआ है। श्रीसारंग ठाकुर द्वारा पूजित श्रीराधा-गोविन्द श्रीविग्रह अब भी वहाँ सेवित होते हैं। श्रीगौरांग पार्षद श्रीवासुदेव दत्त ठाकुर द्वारा सेवित विग्रह श्रीमदन गोपाल जी उक्त मन्दिर में विराजमान हैं।

    श्रीनवद्वीप धाम की परिक्रमा के समय परिक्रमाकारी भक्त लोग उनका दर्शन करते हैं। उक्त सारंग मुरारी के पीठ स्थान के निकट ही श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर महाराज द्वारा प्रतिष्ठित श्रीवृन्दावन दास ठाकुर जी का पीठ स्थान भी है।

    अग्रहायण मास की कृष्ण त्रयोदशी तिथि को सारंग ठाकुर जी का तिरोभाव हुआ। किसी के मत में उनकी आविर्भाव तिथि आषाढ़ मास की कृष्ण चतुर्दशी को पड़ती है।