भगवान् के प्रति प्रेम आंतरिक होता है

यद्यपि भगवान् सभी प्राणियों के पालन पोषणकर्ता हैं किंतु यथार्थ रूप से जागतिक अर्थ में, गृहस्थ भक्त त्यागियों का पालन-पोषण कर रहे हैं।

         मैं प्रचार कार्यक्रम के लिए कोलकाता से 3 सप्ताह के लिए आसाम गया हुआ था। आसाम में चार अलग-अलग स्थानों पर हमारे चार मठ हैं।

        डॉक्टरों ने मुझे अधिक परिश्रम करने के लिए मना कर दिया था। लेकिन बहुत सारे भक्त अपने पास मुझे बुलाने को व्याकुल हो गए थे, इसलिए हमारे बंधुओं ने समुचित विश्राम के प्रावधान के साथ हमारे प्रचार कार्यक्रम की व्यवस्था की। अतएव आपके पत्र का उत्तर देने में देरी हुई, कृपया क्षमा कीजियेगा।

        भगवान् का प्रेम सभी प्राणियों में स्वाभाविक रुप से विद्यमान रहता है, उन्हें किसी से इसे उधार में नहीं लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए जैसे चुम्बक और लोहे के बीच संबंध स्वभाविक है—चुम्बक लोहे को अपनी ओर आकर्षित करता है तथा लोहा स्वतः ही चुम्बक की ओर आकर्षित होता है। कुछ लोग कह सकते हैं कि सब समय ऐसा नहीं होता। चुम्बक औऱ लोहे के बीच आकर्षण खत्म होने का कारण लोहे पर पड़ा जंग है। यदि जंग को हटा दिया जाए तो पारस्परिक आकर्षण पुनः स्थापित हो जाएगा। भगवान् के प्रति जीव के प्रेम की नित्य प्रवर्ति शुद्ध भक्तों का संग करने से जागृत होती है। सभी योनियों में से यह केवल मनुष्य योनि में ही संभव है क्योंकि मनुष्य में अच्छे और बुरे तथा नित्य एवं अनित्य वस्तुओं में अन्तर समझने की शक्ति होती है। भगवान् की भक्ति करने के लिए केवल यह मनुष्य जन्म ही उपयुक्त है। यह मनुष्य जन्म अन्य पशु पक्षियों की तरह खाने, सोने, अपनी रक्षा करने और बच्चे पैदा करने के लिए नहीं है।