श्रील गुरुदेव के गुरुत्व की विशेषता

“हृदय में दीनता आ जाने पर ही साधक-साधिका गुरु-वैष्णवों की कृपा प्राप्त करने के योग्य हो जाते हैं। महापुरुषों की उदारता सर्वजन-विदित सत्य है। साधु-संतों के 26 लक्षण उसी का ज्वलंत दृष्टांत हैं। साधु की दया, उदारता, करुणा एवं अमानी-मानद धर्म जगत के लिए आदर्श होने पर भी ‘कृष्णैकशरणता’ (कृष्ण की एकमात्र शरणागति) ही प्रधान गुण है। जो स्वयं श्रीभगवान की करुणा पर निर्भर हैं, जो ‘षड़ंग-शरणागति’ के मूर्त प्रतीक हैं, वे ही जगत को भगवान एवं भक्तों की सेवा की शिक्षा प्रदान कर सकते हैं, उनको ही *गोस्वामी* कहा गया है। इस प्रकार के सद्गुरु जगत के लोगों को भगवान के सेवक रूप में देखते हैं तथा अपने एकांत अनुकम्पित आश्रितजन को भी भगवान की सेवा के वैभव रूप में मानते हैं। वे किसी को भी शिष्य नहीं करते, उनके हृदय में शिष्य होने की आकांक्षा ही प्रबल होती है।”
गुरुदेव श्रीश्रीमद् भक्ति वेदान्त वामन गोस्वामी महाराजजी, सभापति-आचार्य श्री गौड़ीय वेदान्त समिति।
                                                  [पत्र दिनांक : 12 जून, 1971] ग्वालपाड़ा, आसाम।