Harikatha

श्रील गुरुदेव: न, पहले आप अनुभव करा दें, बाद में वे आपके पास शिक्षा ग्रहण करेंगे?

डा.रमन: नहीं, जिस पद्धति को अवलम्बन करके मैंने वैज्ञानिक सत्यों का अनुभव किया है, वही पद्धति उन्हें भी ग्रहण करनी होगी। (No, they are to come to my process through which I have realized the truth.) पहले उन्हें फलाँ विषय को लेकर B.Sc. पढ़नी होगी, उसके बाद M.Sc. करनी होगी। उसके बाद यदि पांच-छः साल वह मेरे पास पढ़े, तब मैं उनको समझा सकता हूँ।

श्रील गुरुदेव: आपने जो बात कही, क्या भारतीय ऋषि-मुनि लोग उस बात को नहीं कह सकते? उन्होंने जिस पद्धति से आत्मा-परमात्मा-भगवान् को अनुभव किया है, आप भी उसी पद्धति को अवलम्बन करके देखें कि भगवान् को अनुभव किया जा सकता है या नहीं? आप अपने उपलब्ध लौकिक वैज्ञानिक सत्य को भी अपने छात्रों को अनुभव नहीं करा पा रहे हैं, उसके लिए उन्हें विभिन्न प्रकार की विधियों को अपनाना पड़ रहा है तो जो सर्वशक्तिमान, इन्द्रिय-ज्ञानातीत, अलौकिक परमेश्वर हैं, उन्हें क्या आप ऐसे ही जान सकते हैं? इसलिए जिस उपाय से भगवान् की उपलब्धि होती है आप भी उसी उपाय को ग्रहण करके देखो-होती है या नहीं? यदि उपलब्धि न हो तो आप छोड़ देना परन्तु पहले ही आप कैसे मना कर सकते हैं? डा. रमन कोई जवाब न दे सके।

कुछ समय पश्चात् डा.रमन अपने आप कहने लगे कि वे कृष्ण सम्बन्ध में कुछ नहीं जानते, वहाँ जाकर वे क्या कहेंगे? इस विषय को जो जानते हैं उन्हें निमन्त्रण करना अच्छा है।

श्रील गुरुदेव जी की प्रत्युत्पन्नमतित्व एवं उपस्थित बुद्धि इस प्रकार थी कि उनके सामने कोई अयुक्ति की बात कहकर टिक नहीं सकता था। केवल तथाकथित विद्वता के द्वारा ये असाधारण योग्यता सम्भव नहीं है। जो शिष्य गुरुदेव के प्रति समर्पित-आत्मा हैं, जिन्होंने गुरुदेव जी की कृपा से सत्य वस्तु को साक्षात् अनुभव कर लिया है, गुरु शक्ति के प्रभाव से वे एक प्रकार की ऐसी ईश्वरीय शक्ति प्राप्त कर लेते हैं, जिसके सामने भगवद्-अनुभूतिरहित व्यक्तियों की बुद्धिमत्ता नहीं चल पाती।