सेवा क्या वस्तु है?

श्रीहरि के सेवक गण कहते हैं- हे जीव, तुम हरि की सेवा करो, अन्य कुछ भी मत करो। हरि सेवा के नामपर अपना इन्द्रियतर्पण नहीं करना, याद रखो- कृष्ण के इंद्रियतर्पण का नाम ही सेवा है। तुम्हारे अपनी बहिर्मुख इंद्रियों की तृप्ति जिसमें हो, तुम्हारे बहिर्मुख आत्मीय स्वजनों का सुख जिसमें हो, कार्य को करने का नाम सेवा नहीं है। उसे सेवा मानने पर तुम ठगे जाओगे। गृहसेवा को भगवत् सेवा मान कर भूल मत करना, भगवान् का आश्रय लेकर माया की सेवा में अधिक समय नष्ट मत करो, उसमें तुम्हारा मंगल नहीं होगा, परंतु दिन-प्रतिदिन संसार में ही आसक्त हो जाओगे, भगवत् प्राप्ति नहीं होगी। भगवान के लिए व्याकुल होओ, तब तो भगवान् को पाओगे। ‘उड़ती खील कृष्णाय नमः’ कहने पर क्या कृष्ण सेवा होगी? कृष्ण को धोखा देने पर स्वयं ही धोखे में पड़ जाएंगे। इसलिए कहता हूॅं- चतुर होओ। सभी को धोखा देकर कृष्ण सेवा करो। तभी अंतर्यामी कृष्ण प्रसन्न होंगे।