“आज के दिन, अपनी जन्मतिथि के अवसर पर श्रीगुरु की आराधना करना मेरा कर्त्तव्य है। मेरे लिए, श्रीगुरु चार रूपों में प्रकाशित होते हैं। पहले वह हैं जो मेरे अज्ञान को नष्ट करते हैं। भगवान् असीमित ज्ञान के स्रोत हैं, अतएव वे मूल गुरु तत्त्व हैं एवं इसीलिए चैत्यगुरु के रूप में प्रकट होते हैं। अतएव आज उनकी आराधना करना मेरा कर्त्तव्य है।