पत्रों द्वार उपदेश निष्कपट सेवा-चेष्टा रहने से, उसकी सेवा-चेष्टा (भक्ति-भाव) ग्रहण करने के लिए स्वयं भगवन आग्रह करते हैं . . . . . . Share this...FacebookGoogle+TwitterLinkedinPrint