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शरणागति

भक्ति आत्मा की नित्यवृति है; साध्य वस्तु की प्राप्ति के लिये भक्ति केवल अनित्य साधन मात्र नहीं है। भक्ति ही साध्य है और भक्ति ही साधन है। भजनीय भगवान् नित्य हैं, भजन करने वाला भक्त नित्य है और दोनों में सम्बन्ध कराने वाली भक्ति भी नित्य है।

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