केवल सुकृति अर्जन करना नहीं, बल्कि….

केवल सुकृति अर्जन करना नहीं, बल्कि अप्राकृत शक्ति का आश्रय ग्रहण करना ही हमारा उद्देश्य

हमें सब समय प्रत्येक कार्य के अन्तर्निहित (अन्दर छिपे) उद्देश्य के प्रति ध्यान रखना होगाl नहीं तो बाहरी अनुष्ठान हमें निगल जायेगा l वह एक प्रकार के सत्कर्म में ही आयेगा l केवल मात्र ‘सुकृति’ अर्जन करना ही हमारा उद्देश्य नहीं है l अप्रकृत भक्ति का अनुसंधान (खोज) करके केवलमात्र उसी का आश्रय ग्रहण करना होगा । इसलिए श्रील गुरूपादपदम जिसमें आकृष्ट होते हैं उसे करना ही गुरुसेवक का एकमात्र उद्देश्य है l हमने इस उद्देश्य को लेकर ही श्रील प्रभुपाद के पादपदम में बैठकर उनकी अभिलाषा को पूरा करने के लिए यथायोग्य अर्चन किया है l