गुरुजनों के उनके प्रति आशीर्वचन

श्रील गुरुदेव का प्रत्येक कार्य अपने गुरुदेव के प्रति पूर्ण शरणागति का निदर्शन था। वे गुरु-भक्ति के एक अद्वितीय आदर्श के रूप में प्रतिष्ठित हुए। गुरु-वैष्णवों की सेवा में श्रील गुरुदेव के अदम्य उत्साह और अथक प्रयासों से प्रसन्न होकर, उनके परम-आराध्यतम गुरुदेव, परमहंस परिव्राजक-आचार्य नित्य-लीला-प्रविष्ट ॐ विष्णुपाद १०८ श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज के हृदय से यह उद्गार निकले थे, “शिष्य तो मेरे अनेक हैं किन्तु तीर्थ महाराज मेरे हृदय के अत्यन्त निकट हैं।”

श्रील गुरुदेव, परमहंस-कुल-चूड़ामणि श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद के सभी शिष्यों के भी अति प्रिय व उनके विपुल स्नेह एवं आशीर्वाद के सर्वोत्तम योग्य पात्र थे। उनके प्रति गुरुजनों के आशीर्वचन—

“माधव महाराज! आपके पास तो बने बनाये आचार्य हैं। तीर्थ महाराज जन्म से ही आचार्य हैं, हमें उन्हें बनाने की आवश्यकता नहीं है।”
-श्रील भक्ति रक्षक श्रीधर गोस्वामी महाराज (१८९५-१९८८)
संस्थापक-आचार्य श्रीचैतन्य सारस्वत मठ

“भक्ति बल्लभ तीर्थ महाराज श्रीमन् महाप्रभु के द्वारा रचित शिक्षाष्टक के तृतीय श्लोक ‘तृणादपि सुनीचेन’ के विग्रह स्वरूप हैं। वर्तमान समय में गौड़ीय गगन में अन्य कोई ऐसा देदीप्यमान भास्कर नहीं हैं और भविष्य में होगा, इसमें भी सन्देह है। आप सब अति सौभाग्यशाली हैं कि आपको उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ है।”
-श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज (१८९८-१९९९)
संस्थापक-आचार्य श्रीगोपीनाथ गौड़ीय मठ

“यदि आप जैसा शिक्षित एवं योग्य व्यक्ति मेरे साथ विदेश चले तो मेरे लिए बहुत सहायक सिद्ध होगा।”
-श्रील ए.सी. भक्ति वेदांत स्वामी महाराज (१८९६-१९७७)
संस्थापक-आचार्य इस्कॉन

“शास्त्रों में साधु के दीनता, आनुगत्य, शरणागति, आदि जितने भी गुणों का उल्लेख है वे सभी तीर्थ महाराज में विद्यमान हैं। वे एक महान् साधु हैं। जो उनके शरणागत होंगे वे निश्चित रूप से लाभान्वित होंगे।”
-श्रील भक्ति कुमुद संत गोस्वामी महाराज (१९१३-२०१२)
संस्थापक-आचार्य श्रीचैतन्य आश्रम

“हमारे गुरुभाईयों की पीढ़ी के बाद, वर्तमान समय में भक्ति बल्लभ तीर्थ महाराज जैसा उच्च कोटि का वैष्णव मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। यदि आप वैष्णव आचरण सीखना चाहते हैं, तो उनके पास जाएँ। यदि ऐसे वैष्णव की सेवा के लिए ऋण भी लेना पड़े तो उसे अपना सौभाग्य समझना।”
-श्रील भक्ति सौरभ भक्तिसार गोस्वामी महाराज (१९०२-१९९५)
संस्थापक-आचार्य श्रीगौरांग गौड़ीय मठ