गजेंद्र मोक्ष – 12

साक्षाद्धरित्वेन समस्त शास्त्रैः
उक्तस्तथा भावयत एव सद्भिः।
किन्तु प्रभोर्यः प्रिय एव तस्य
वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥
वाञ्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपा-सिन्धुभ्य एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः॥
संकर्षणः कारण-तोय-शायी
गर्भोदशायी च पयोब्धिशायी।
शेषश्च यस्यांश-कला:
स नित्यानंदाख्यरामः शरणं ममास्तु॥
नमस्ते तु हलग्राम! नमस्ते मुषलायुध!।
नमस्ते रेवतीकान्त! नमस्ते भक्तवत्सल!।।
नमस्ते बलिनां श्रेष्ठ! नमस्ते धरणीधर!।
प्रलम्बारे! नमस्ते तु त्राहि मां कृष्ण-पूर्वज!।।
नमो महावदान्याय, कृष्ण प्रेम प्रदायते।
कृष्णाय कृष्णचैतन्यनाम्ने गौरत्विषे नमः॥
भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिच्छं कटितटे
दुकूलं नेत्रान्ते सहचर-कटाक्षं विदधते ।
सदा श्रीमद्‍-वृन्दावन-वसति-लीला-परिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥
तप्त-काञ्चन गौरांगी! राधे! वृंदावनेश्वरी!।
वृषभानुसुते! देवी! प्रणमामि हरिप्रिये!॥
हे कृष्ण! करुणासिन्धो! दीनबन्धो! जगत्पते!
गोपेश! गोपिकाकान्त! राधाकान्त! नमोस्तु ते॥
वन्दे नन्दव्रजस्‍त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णश:।
यासां हरिकथोद्गीतं पुनाति भुवनत्रयम्॥
भक्त्या विहीना अपराधलक्षैः क्षिप्ताश्च कामादि तरंगमध्ये।
कृपामयि त्वां शरणं प्रपन्ना, वृन्दे! नमस्ते चरणारविन्दम्॥
श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवास आदि गौर भक्त वृन्द
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥

सबसे पहले मैं पतितपावन
परमाराध्यतम् श्रीभगवान के अभिन्न प्रकाश विग्रह
श्रीभगवत ज्ञान प्रदाता
श्रीभगवान की सेवा में अधिकार प्रदान करनेवाले
परम करुणामय श्रील गुरुदेव के श्रील पादपद्म में
अनंत कोटि साष्टांग दंडवत प्रणाम करते हुए
उनकी अहैतुकी कृपा प्रार्थना करता हूँ
पूजनीय वैष्णव वृन्द के श्रीचरण में प्रणत होकर
उनकी अहैतुकी कृपा प्रार्थना करता हूँ
भगवत कथा श्रवण पिपासु
दामोदर व्रत पालनकारी भक्त वृन्दों को
मैं यथा-योग्य अभिवादन करता हूँ
सब की प्रसन्नता प्रार्थना करता हूँ

श्रीगजेन्द्र उवाच
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम्।
योऽस्मात् परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम्॥
य: स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्‍वचिद् विभातं क्‍व च तत् तिरोहितम्।
अविद्धद‍ृक् साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्ममूलोऽवतु मां परात्पर:॥
कालेन पञ्चत्वमितेषु कृत्स्‍नशो
लोकेषु पालेषु च सर्वहेतुषु।
तमस्तदासीद् गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेऽभिविराजते विभु:॥
न यस्य देवा ऋषय: पदं विदु-
र्जन्तु: पुन: कोऽर्हति गन्तुमीरितुम्।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमण: स मावतु॥
दिद‍ृक्षवो यस्य पदं सुमङ्गलं
विमुक्तसङ्गा मुनय: सुसाधव:।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने
भूतात्मभूता: सुहृद: स मे गति:॥
न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा
न नामरूपे गुणदोष एव वा।
तथापि लोकाप्ययसम्भवाय य:
स्वमायया तान्यनुकालमृच्छति॥
तस्मै नम: परेशाय ब्रह्मणेऽनन्तशक्तये।
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्यकर्मणे॥
नम आत्मप्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने।
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि॥

गजेन्द्र दिल से…
आत्मा की नित्य वृत्ति अहैतुकी भक्ति प्रकाशित हुई जब
दिल से भगवान का स्तव कर रहा है
और भगवान के पादपद्म में प्रार्थना कर रहा है
मैं आपके चरण में शरण लेता हूँ, आपका ध्यान करता हूँ
आप मेरी रक्षा कीजिये
एक-एक स्तव करते हैं और भगवान के चरण में सहारा लेता हैं
मैं एक साधारण जंतु हूँ, हाथी हूँ,
आपका महात्म्य क्या वर्णन करूँ?
being as an elephant,
how can I
sing the glories? O Supreme Lord!
where principle demigods and ṛṣi-muni
they become infatuated
they cannot sing the glories
whatever I am saying I am saying everything wrong
these sort of humbleness
you will find in his
hymns whatever he is saying
the demigods, principle demigods
by their own endeavor they cannot know
no ṛṣi-munis can by their own endeavor
can get realization of Him
then there is no other way?
-और कोई उपाय नहीं है? -ना; है
है, उपाय है!!
वो होता है, अलोकव्रत
वर्णाश्रम धर्म…
उससे भी अधिक, अतिक्रम करके होता है भागवत व्रत
जब भागवत व्रत अवलंबन करे
उनके चरण में सहारा ले अनन्य भाव से
तब उनको जान सकते हैं
हम लोग पहले
यह याद किया, ये वै भगवता प्रोक्ता उपाया ह्यात्मलब्धये।
अञ्ज: पुंसामविदुषां विद्धि भागवतान् हि तान्॥
जो आँख बंद कर के भी चले
भागवत धर्म आश्रय करके
मुर्ख व्यक्ति भी
उसे ज्ञान नहीं है तब भी आसानी से
वो संसार समुद्र को पार हो जाएगा
अपार संसार समुद्र सेतुं
वही भगवान का स्वरुप है
सर्वशक्तिमान हैं, ब्रह्म, परमात्मा सभी के कारण हैं
ब्रह्मा, रूद्र आदि का भी कारण हैं; ईश्वरों के ईश्वर हैं
मैं वही परमेश्वर के चरण में आश्रय लेता हूँ
अक्षत ब्रह्मचर्य व्रत आचरण
शुद्ध भक्ति में ही होता है
साधारण वर्णाश्रम अंतर्गत ब्रह्मचर्य के बारे में नहीं कहते हैं
कर्म जो है…
कर्म द्वारा कर्म की आत्यंतिक निवृत्ति नहीं होती है
प्रायश्चित्तं विमर्शनम्
प्रायश्चित के प्रसंग में है
वेद विहित है वो ठीक है, मनु-आदि ऋषि प्रणित
लेकिन उसमें तमो गुण से पाप करते हैं
रजो गुण में पाप पुण्य
सत्त्व गुण में पुण्य करता है
तमो गुण से पाप करके सत्त्व गुण का जो चंद्रयान व्रत आदि करके
वो पाप से मुक्ति चेष्टा करता है
कर्मणा कर्मनिर्हारो न ह्यात्यन्तिक इष्यते।
जो पाप करते हैं वो भी कर्म ही है
वो कर्म कहाँ से आया?
अज्ञान से आया
त्रिगुण में फँस गया, भगवान की बहिरंगा शक्ति
व्यक्ति तो आत्मा है
आत्मा के अंदर में त्रिगुण नहीं हैं
तमो गुण तामसिक भाव, राजसिक भाव, सात्त्विक भाव
तामसिक भाव से पाप करके
सात्त्विक भाव से प्रायश्चित करके
पाप से आत्यंतिक निर्वृत्ति नहीं होती है
सात्त्विक जो कर्म करते हैं उसका जो अभिमान
अज्ञान का है, अज्ञान के तीन गुण हैं
the primary qualities of external potency sattva, rajo
with the false ego tamo-guṇa
we commit sins
and by doing attornment or expiation
through sattva-guṇa as per the scripture evidence
we cannot be
delivered from the fruits of our sins
because the root cause is there
root cause of doing
all the sins is ignorance
ignorance means misconception of self
sattva-guṇa is also the quality
of the external potency
may be expositionally it is
in the top
but it is an qualification of external potency
with that ego whatever we do
will be ignorance, one ignorant cannot
completely irradiate another fruits of ignorance
pāpa is also out of ignorance and punya is also out of ignorance
‘प्रायश्चित्तं विमर्शनम्’ आत्म साक्षात्कार का ज्ञान प्रायश्चित्त है
यह सम्यक प्रायश्चित, जब आत्मा का ज्ञान होगा अनात्म-वस्तु की मांग नहीं होगी
लेकिन जो ज्ञानी लोग
प्रायश्चित करते हैं
तपसा ब्रह्मचर्येण शमेन च दमेन च।
त्यागेन सत्यशौचाभ्यां यमेन नियमेन वा॥
देहवाग्बुद्धिजं धीरा धर्मज्ञा: श्रद्धयान्विता:।
क्षिपन्त्यघं महदपि वेणुगुल्ममिवानल:॥
भागवत में लिखा है
षष्ट स्कन्ध में लिखा, अजामिल प्रसंग में
अभी पंचम स्कन्ध में क्या पाप करने से कौन नरक है उसके बारे में लिखा
भीषण-भीषण नरक का वर्णन है
अभी परीक्षित महराज की चिंता हुई
मैं तो पाप कर चूका हूँ
एक मुनि का अपमान किया
फिर मेरे ऊपर अभिशाप हुआ
उन्होंने पूछा, पाप कर चुका है
वही पाप का नतीजा जो नरक है उससे बचने का कोई उपाय है?
शरीर रहते-रहते
मरने के पहले ही, before death
if you do all kinds of attornment as
prescribed is the scripture for different sins
वो पाप के लिए प्रायश्चित की व्यवस्था दी है?
गुरु पाप में गुरु प्रायश्चित, लघु पाप में लघु प्रायश्चित
एक बिल्ली को मार दिया
बिल्ली के वजन [अनुसार] से नमक दान करना
एक गाय को मार दिया
चंद्रयान व्रत तो करना ही होगा
उसको गाय के वजन [अनुसार] सोना दान करना होगा
एक किस्म का ऋण है
तब परीक्षित महाराज कहते हैं ऐसा प्रायश्चित करते हुए भी तो फिर पाप करते हैं
यह प्रायश्चित का फल क्या होता है?
यह तो हाथी के स्नान करने के जैसा है
स्नान कर दिया फिर
फिर पानी से उठकर सूंड से कीचड़ को सारे शरीर में लगा देता है
यह प्रायश्चित का तो कोई फायदा नहीं है
तब शुकदेव गोस्वामी कहते हैं, हाँ
कर्मकाण्डिय प्रायश्चित इस प्रकार है
एक पाप किया अज्ञान से है, पुण्य भी अज्ञान से है
एक अज्ञान एक अज्ञान को दूर नहीं करता है
यह ज्ञानकाण्डिय प्रायश्चित जैसे आत्म-साक्षात्कार
लेकिन उसमें एक उदाहरण देते हैं
वो उदहारण तो
यह प्रसंग तो यहाँ आलोचना की बात नहीं है
इसको विस्तार रूप से कहने का समय नहीं है
सारा समय चला जाएगा
वो वहाँ पर बोल दिया
कि बांस-झाड में
वो उसमें जब आग लगती है
तब बांस ऊपर-ऊपर से जल जाते हैं उसका उदहारण दिया ना,
वेणुगुल्ममिवानल:
उसका मूल तो मिट्टी में रह जाता है
उसमें पानी बरसने से फिर पेड़ निकलता है
इसमें भी तो डर है, जो आपने बोला
वेणुगुल्ममिवानल:
तब शुकदेव गोस्वामी संतुष्ट हुए, हाँ ठीक है
इससे भी और एक प्रायश्चित है इसमें भी भय है
केचित्केवलया भक्त्या वासुदेवपरायणा:।
अघं धुन्वन्ति कार्त्स्‍न्येन नीहारमिव भास्कर:॥
इसमें भी भय है
किसलिए उनको
भगवान का आश्रय तो नहीं लिया
ज्ञानी भजन करते हैं अपनी चेष्टा से
इसलिए जब गिर जाते है तब एकदम
एक पांच मंजिल मकान है
कि दस मंजिल मकान है
मकान के ऊपर में वहाँ पर
wall है, छत पर wall है
एक बच्चा wall के ऊपर चल रहा है
पिताजी ने उनको पकड़कर रखा है, गिरने से उठा लेगा
जब पिताजी का हाथ छोड़ देंगे, तब..धुडुम
ज्ञानी-योगी भगवान का आश्रय नहीं लेते हैं
अपनी हिम्मत से जाते हैं
जब गिर जाते हैं एकदम धुडुम….
लेकिन भक्त पहले ही भगवान का आश्रय लेते हैं
सर्वशक्तिमान भगवान उनके रक्षक पालक हैं गिरने से उसे उठा लेंगे
फरक है
केचित्केवलया भक्त्या
बहुत लोगों में कोई तो एसा मिलता है, सिर्फ भक्ति से
वासुदेव का श्रेष्ठ रूप से आश्रय किया
अघं धुन्वन्ति कार्त्स्‍न्येन
पाप के मूल को उखाड़ देगा
can irradiate, can uproot the cause all sins
केवला भक्ति
केवला भक्ति की जरुरत नहीं है
सिर्फ शरणागति से होगा
न तथा ह्यघवान् राजन्पूयेत तपआदिभि:।
यथा कृष्णार्पितप्राणस्तत्पुरुषनिषेवया॥
भक्ति की जरुरत नहीं है पाप को हटाने के लिए
भक्ति की बुनियाद शरणागति जब हो जाए
हे परीक्षित महाराज
पापिष्ट व्यक्ति ऐसा प्रवित्र नहीं हो सकता है
ज्ञानकान्डिय तपस्या ब्रह्मचर्य शम दम आदि द्वारा
जिस प्रकार होता है भगवान में शरणागत हो जाओ
न तथा ह्यघवान् राजन्पूयेत तपआदिभि:। यथा कृष्णार्पितप्राणस्
कृष्ण में अर्पित हो
कृष्णार्पितप्राणः तं कथं सः?
कैसे कृष्ण में अर्पित होंगे?
तत्पुरुषनिषेवया
जो हरि ॐ तत् सत्, हरि-भक्त जो हैं
कृष्ण के जो भक्त हैं उनका आश्रय करने से होगा
भक्त की परिचर्या सर्वोत्तम प्रायश्चित है
आत्मा की नित्य वृत्ति प्रकाश हो जाएगी
भगवान में भक्ति प्रकाशित हो जाएगी
और भगवान की भक्ति आत्मा में है
उसे बाहर से ले आनी पड़ेगी ऐसा नहीं है
हरि-भक्ति जो है
नित्यसिद्ध कृष्णप्रेम ‘साध्य’ कभू नय। श्रवणादि-शुद्धचित्ते करये उदय॥
यह नित्य सिद्ध है
वो बाहर से किसी से लेना पड़ेगा, वो ऐसा नहीं है
जैसे चुम्बक है magnet and iron
चुम्बक है और लोहा है
वो चुम्बक का क्या धर्म होता है?
लोहा को खींचता है
लोहे का क्या धर्म है?
चुम्बक से खींच जाता है, स्वाभाविक है
वो उसको
विद्या लाभ करके, शिक्षा लाभ करके, अहैतुकी भक्ति करेंगे
यह सब जरुरत नहीं है, अपने आप में; स्वाभाविक है, ना?
लेकिन चुम्बक है लोहा है
चुम्बक लोहे को नहीं खींच रहा है
और लोहा नहीं खींचा जा रहा है
ओ.. यह बात तो ठीक नहीं है, चुम्बक तो नहीं खींचता है
लोहा तो नहीं खींचा जा रहा
ना; ठीक ही है
क्यों नहीं दीखता है? वो लोहे ऊपर जंग लग गया है
rust, dirt
उसको जब हम हटा देंगे
other evil desires ulterior desires
वो desires contaminated it and is enveloped
so that exclusive devotion is not manifested
वो तो है भीतर में… it is there…
साधुसंग द्वारा
तत्पुरुषनिषेवया
भगवान का निज जन जो है उनकी सेवा द्वारा
ऐसा कोई भक्त मिले
rarely found pure devotee
you can serve him
an awakened soul can awaken the
eternal nature of another sleeping soul
जब घूम, नींद जा रहा है, ना?
अभी नींद जा रहा है, वही आत्मा की
वृत्ति प्रकाशित नहीं है
उसको प्रकाशित करना है
श्रवणादि-शुद्धचित्ते करये उदय
भक्त से शुद्ध भक्त से श्रवण करते-करते
और श्रवण,कीर्तन इत्यादि करते-करते वो प्रकाशित होती है
भीतर में है, हरेक का प्रेम भीतर में ही है
बाहर से वो भरना नहीं पड़ता
लेकिन शुद्ध भक्त के संग से वो प्रकाशित होता है
इसी प्रकार
अभी वो भगवान का स्वरुप है
दुनिया में हम लोग स्वरुप देख रहे है
चरम कारण में रूप नहीं है
रूप होने से तो सीमा में आ गया
हम लोग प्राकृत मन बुद्धि से ऐसा विचार करते हैं
सीमा में आ गया, तब तो भगवान और भगवान नहीं रहे
भगवान का कोई रूप नहीं है, गुण नहीं है, कुछ भी नहीं है
भगवान is nothing, शक्तिहीन है ऐसा बोल देते हैं
यह जो हम लोग बोलते हैं,
भगवान की माया से मोहित होकर
ऐसा बोलते हैं लेकिन यह दुनिया में रूप कहाँ से आया?
जब कारण में रूप नहीं हो
if in the cause there is no form then all these forms, where from they are coming?
how these are manifested?
all we are seeing all these created beings
यह जो है ना यहाँ पर
कोई जड़ पदार्थ को व्यक्ति कहते हैं?
चेतन को व्यक्ति कहते हैं चेतन
अणु चेतन अणु व्यक्ति
अणु इच्छा क्रिया अनुभूति है
वो जब तक रहते हैं उसको व्यक्ति कहते हैं
अभी वो जब नहीं रहते हैं मुर्दे को कोई व्यक्ति नहीं कहते
हम लोग शास्त्र नहीं मानते हैं
गीता नहीं मानतें हैं कुछ नहीं मानते हैं
युक्ति तो मानोगे?
जब युक्ति नहीं माने तब आदमी नहीं है
जब शरीर को व्यक्ति मानते हैं
पिता शरीर है, पिता जब मर जाते हैं
पिता के शरीर को जलाने से उसको criminal prosecution होना चाहिए
पिता को जला दिया
कि कब्बर दिया
जानवर-चिड़िया को खिलाया जिसका जो system
कोई भी आस्तिक-नास्तिक कोई भी इसमें
मुर्दे को जला ने से, कब्बर देने से
जानवर को खिलाने से, उनको दंड नहीं होता है
जब तक चेतनता रहती है तब….
अभी तो वोट का बाजार है; वोट-वोट-वोट-वोट….
जब शरीर का वोट होता, शरीर को रासायनिक प्रक्रिया से रख सकते हैं
बहुत साल तक रख सकते हैं
वोट देने वक्त शरीर लेकर जाएँगे, मुर्दा लेकर वहाँ पर
जो वोट देने का स्थान है
वहाँ जाकर जब पहुँच जाएँगे
यह हमारा वोटर है
तो वहाँ का जो व्यक्ति है, क्या है मुर्दा को ले आया?
सारे हमारे बूथ को खराब कर दिया
इसको दंडा मारो, दंडा मारो
इसको जेल में कैद करलो जाओ
लेकिन जिस व्यक्ति में जान है
एकदम वो bed ridden है,
हस्पताल में दाखिल है
उसको strature में ले आएँगे, प्राण है
कोई मानता नहीं दुनिया में, शरीर को व्यक्ति
जबरदस्ती बोलते हैं, जब तक चेतन रहता है तब तक…
अणु चेतन को अणु व्यक्ति कहते हैं, विभु चेतन विभु व्यक्ति हैं
यह कहने में क्या मुस्किल है?
व्यक्ति, personality is not attributed to an unconscious principle
it is attributed to a conscious principle
consciousness is manifested, personality is also manifested
उतना knowledge का base ज्यादा होगा
इसलिए हरेक जीव होता है सच्चिदानंद
जिससे वो हमेशा ज़िंदा रहने के लिए चाहता है
ज्ञान प्राप्त करने के लिए चाहता है, आनंद प्राप्त करने के लिए चाहता है
इसलिए जब वो अनित्य, अज्ञान, आनंद का अभाव होता
नित्यकाल रहने के लिए इच्छा नहीं हो सकती है, कोई मरने को नहीं चाहता है
जो मरने वाला है वो मरेगा
लेकिन उसके भीतर में सत्ता है सच्चिदानंद आत्मा
इसलिए वो हमेशा रहने के लिए चाहता है
वो ज्ञान प्राप्त करने के लिए चाहता है
अज्ञान को ज्ञान प्राप्ति के लिए इच्छा नहीं होती
और आनंद को ही आनंद प्राप्ति की रूचि होती है
अणु सच्चिदानंद जब व्यक्ति है,
विभु सच्चिदानन्द भगवान व्यक्ति नहीं हैं?
एक है जीव
जो भगवान को भूल के यहाँ पर आ गया
(शरीर) हड्डी गोश्त का वो नष्ट हो जाता है
भगवान होते हैं सच्चिदानंद विग्रह
उनका भी स्वरुप है
‘श्री’ भगवान का ऐश्वर्य है
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः।
ज्ञान-वैराग्योश्चैव षण्णां भग इतीङ्गना।। (विष्णुपुराण 6.5.47)
यह चार.. छः
जो भग हैं, ऐश्वर्य हैं, मुख्य, अनंत ऐश्वर्य हैं
उसमें ‘श्री’ एक रूप है, सौन्दर्य
सौंदर्य किस में होता है? form में रहता है
इसलिए भगवान का रूप है
भगवान का व्यक्तित्त्व है, अप्राकृत व्यक्तित्त्व, transcendental personality
और जीव के स्वरुप में भी…
उनकी transcendental personality है, spriritual form है
जीव का.. विशुद्ध भूमिका में…
उनका सम्बन्ध से भगवान से
इसलिए इसी प्रकार वो सेवा करते हैं
जिससे दुनिया में रहकर जब भगवान की
प्रभु रूप से सेवा नहीं करते हैं
तब उनको नाशवान प्रभु मिलेगा
दंड है, इससे जबर punishment क्या है?
नाशवान प्रभु लो
प्रभु भृत्य सम्बन्ध हो गया
जितनी आसक्ति होगी, मरने के वक्त उतना दुःख होगा
प्रभु भृत्य से दोस्त-दोस्त में सम्बन्ध रहने से और ज्यादा…
भगवान को दोस्त रूप से सेवा नहीं करते हैं
ऐसा तो नाशवान दोस्त मिलेगा
जब मर जाएगा तब उनको रोना पड़ेगा
भगवान को पुत्र रूप से सेवा करने को नहीं चाहते हैं
तब नाशवान पुत्र मिलेगा
जब मर जाएगा पिता-माता को और ज्यादा दुःख होगा
भगवान को पति रूप से सेवा नहीं करते हैं
तब नाशवान पति मिलेगा
वही जगत का this is the perverted reflaction
विकृत प्रतिफलन
वहाँ पर शांत रस सबसे नीचे है
और मधुर रस सबसे ऊपर है
यहाँ पर मधुर रस सबसे ख़राब है
और शांत रस श्रेष्ठ है। किसलिए? यहाँ पर नाशवान वस्तु है
जितना आसक्त होंगे उतना कष्ट पाएँगे
इसलिए निरपेक्ष रूप से शांत जो रहते हैं उसको हम लोग
कहते हैं यह व्यक्ति अच्छा है
लेकिन वहाँ पर जब भगवान से निरपेक्ष रहेंगे
तब आनंद कभी नहीं मिलेगा
जितना भगवान से हम मिल जाएँगे उतना आनंद ज्यादा होगा
किसलिए? वहाँ पर स्वरुप है
तो स्वरुप है, दुनिया में ऐसा स्वरुप तो बिगड़ने वाला है
इस प्रकार रूप है?
हम लोगों के माफिक और इस प्रकार जन्म होता है
नहीं जन्म कर्म च मे दिव्यं
एवं यो वेत्ति तत्त्वतः। त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥
ऐसा देखा है
वो phoenix में
एक चर्च में meeting हुई, अमेरिका में
वहाँ मीटिंग हुई, मीटिंग के बाद
एक अमेरिकन व्यक्ति
उससे थोड़ी देर बात हुई
he was talking to me
I have got
always firm faith and love
for going through Gita
I daily go through Gita, without going through Gita
I do not go out to do anything
this is my daily routine first I go through Gita
मुझे तो सुन के आश्चर्य हो गया
कि यहाँ पर भी ऐसा है
गीता पढ़के उसके बाद काम करने को जाते हैं
मैंने उनकी बहुत तारीफ़ की
वो कहते हैं, स्वामीजी
I have got faith and love for Gita
bur Swamiji! I don’t believe Krishna as Supreme Lord
Krishna has parents
हम लोगों के जैसे होता है ना? माँ बाप से जन्म लेते हैं
ऐसे उनके भी माँ बाप हैं
उनके तो माँ बाप हैं
He may be a super human being
great diplomat, great politician
रास्ते में खड़ा होकर बात कर रहा है
अभी वहाँ पर तो सब प्रसाद लेते हैं, प्रसाद लेने के बाद सब चले जाते हैं
वहाँ ज्यादा देर बात करना मुश्किल है फिर मैं कहा
आपकी गीता में बहुत श्रद्धा है
इसलिए सुनके मुझे बहुत आनंद हुआ
भगवान अतिमानव हैं, महामानव हैं
राजनीति वित् हैं, कूटनीति वित् हैं, diplomat हैं
गीता से कोई एक श्लोक दिखाइए
I want an evidence from Gita itself
to substantiate what you are saying
you have got love for Gita
ऐसे गीता पढने से फायदा क्या है?
मत्त: परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव॥ (गीता 7.7)
there is nothing suprerior to Me and greater than Me
everything is ever linked with Me,
स्वयं कृष्ण कहते हैं
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तम:।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथित: पुरुषोत्तम:॥ (गीता 15.18)
क्षर वस्तु जीव से अतीत हूँ मैं
और अक्षर वस्तु ब्रह्म परमात्मा से श्रेष्ठ हूँ
इसलिए मुझे पुरुषोत्तम कहते हैं
ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च।
जो निराकार निर्विशेष ब्रह्म हैं उसका भी कारण मैं ही हूँ
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥ (गीता 4.9)
मेरा जन्म कर्म दुनिया के बद्ध जीव के माफिक नहीं है
वो स्वतः सिद्ध है
सिर्फ वात्सल्य-रस सेवा प्रदान करने के लिए
कृष्ण वसुदेव देवकी,
नन्द महाराज यशोदा देवी
भगवान रामचन्द्र दशरथ महाराज कौशल्या को
अवलंबन करके प्रकट हुए
उन लोगों ने उनको पैदा नहीं किया
देवकी के गर्भ से भगवान नहीं आए
जन्म लीला पढ़िए भागवत से
भागवत में जब जन्माष्टमी में पढ़ते हैं ना? उसमें क्या पढ़ते हैं?
भगवान तो कारागार में, in prison house
उसको उजाला करके चतुर्भुज रूप से प्रकट हो गए
शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी, किरीट कुंडलधारी पीत-वसनधारी
पेट से नहीं निकले, पेट से निकलने से चक्र से पेट कट जाता
देखकर तो आश्चर्य हो गया
तब वसुदेव देवकी ने प्रार्थना की
अभी तो कंस आएगा मारने के लिए
अभी इनको छिपाके कैसे रखेंगे?
यह तो कोई आदमी का लड़का चार हाथ वाला होता नहीं है
जब दो हाथ होता तब छिपा के रखते
चार हाथ वाला, मारने वाला कंस आएगा
तब प्रार्थना की
आप प्रकट हुए कोई विश्वास नहीं करेगा
किसी आदमी का चार हाथ वाला [बच्चा नहीं होता] आप दो हाथवाले बन जाओ
मैं दो हाथ होकर ही मनुष्य के माफिक ही जन्म ले सकता था
तुम लोगों को डर रहता
अभी मैं भगवान आ गया हूँ मैं कंस को निधन करूँगा
कोई भय नहीं है
प्राक बभूव प्राकृत यथा
ऐसा प्राकृत के माफिक छोटा बच्चा
तो उसको लेकर वसुदेव
यमुना पार होकर वहाँ पर गोकुल में रखके आए
यह जो इधर में सब ज़ंजीर खुल गईं
और कारागार भी खुल गया सब खुल गया
कहाँ से खुला?
कोई किसीको मालुम नहीं है योगमाया का प्रभाव से
कंस का मालुम नहीं, पहरादार भी
किसीको मालुम नहीं है
वो सब जाकर कहाँ-कहाँ सब लीला करते हैं
वहाँ पर
वासुदेव कृष्ण नंदनंदन कृष्ण में घुस गया
और योगमाया को फिर ले आए
एक कन्या हुई ओर एक पुत्र हुआ, कन्या को ले आके जब
कारागार में प्रवेश किया तो कारागार बंद होकर ज़ंजीर लग गई
तब वो कन्या रोने लगी
तब पहरेदार ए…
कंस के पास दौड़ कर आया; हे लड़का हो गया लड़का हो गया
लड़का तो नहीं लड़की हो गई
यह क्या हो गया? लड़की कहाँ से हो गई
जो है उसको ही मारेंगे
बाएं हाथ से पकड़कर हाथ से छीन लिया
अष्ट भुज होकर
तुझ को जो मारेगा वो दूसरी तरफ जन्म लिया है
ओ.. हो… सब झूठ हो गया
कितने सबको मार दिया, मैंने बहुत अन्याय किया
वसुदेव देवकी से तब प्रार्थना करने लगा
मैंने बहुत अन्याय किया
कष्ट दिया
दूसरी तरफ ध्यान दिया
इसलिए कहते हैं, वही भगवान का स्वरूप हैं
[वे] ब्रह्म परमात्मा सभी के कारण हैं
लेकिन उनका जन्म हम लोगों के माफिक नहीं है
जैसे कर्म-फल भोग करने के लिए जन्म लेते हैं
ऐसा नहीं समझना
इस प्रकार कर्म भी नहीं है
जो हम लोग यहाँ करते हैं,
जन्म कर्म नाम रूप जो देखते हैं
यह अनित्य है
नाम है, क्या नाम है?
एक व्यक्ति का एक आँख नष्ट है
काना है तो क्या कहते हैं?
उनका नाम है पद्मलोचन
पद्मलोचन उसकी एक आँख ही नहीं है, मिलता नहीं
नाम के साथ गुण; यहाँ पर भगवान का नाम
और भगवान चिन्मय वस्तु हैं, यहाँ पर बोले हैं
व्याख्या कर के आप लोग
टीकाकार की व्याख्या सुनिए
अभी जो देखिए यह दुनियादारी के गुण दोष
यह सब त्रिगुण का जो हैं गुण दोष यह भगवान में नहीं हैं
भगवान निर्गुण हैं, निर्गुण का अखिल कल्याण गुण है
निर्गुण का मतलब कोई गुण नहीं है ऐसा नहीं है
हरिर्हि निर्गुण: साक्षात् पुरुष: प्रकृते: पर:।
निर्गुण में अखिल कल्याण गुण हैं
यहाँ पर ब्रह्मा रुद्र भी
आखरी में नाश हो जाते हैं लेकिन
भगवान का जो स्वरुप है
वो स्वरुप कभी नाश होने वाला नहीं है
वो होता है, अमायिक स्वरुप
भगवान का अमायिक स्वरुप, यहाँ पर आप लोग देखेंगे
प्रकृत जन्म कर्म आदि
प्रकृत जन्म कर्म आदि का अभाव है
प्राकृत जन्म कर्म युक्त
प्राकृत जन्म कर्म आदि का अभाव
प्राकृत जन्म कर्म आदि का युक्त दोनों देखा है
भगवान में सभी हैं
प्राकृत जन्म कर्म हैं
और फिर ब्रह्मा का जब
दिन होता है तब सृष्टि और रात्री में ध्वंश हो जाता है
जब महाप्रलय में सारा ही प्रकृति में लय हो जाता है
फिर जब सृष्टि होती तब फिर ब्रह्मा आते हैं
और रूद्र संहार करते हैं; वो है
लेकिन भगवान का
स्वरुप हैं, जिनका प्राकृत जन्म कर्म नाम गुणदोष यह सब कुछ भी नहीं हैं
भगवान का नहीं हैं
बहुत आदमी कहते हैं, देखिये
यह बात नहीं करने से नहीं हो पाएगी, समय घडी देखने से तो मुश्किल हो जाएगा
उसमे एक बहुत important बात है
किसलिए?
जब इसको नहीं समझेंगे तब मुश्किल होगी
एक चरम कारण कभी आकार नहीं हो सकता है
चरम कारण निराकार
निर्गुण है नि:शक्तिक है यह कहते हैं
चरम कारण जब ऐसा हो
अभी यह जो कहते हैं विवर्तवाद और शक्ति परिणामवाद
वेदव्यास मुनि ने कहा शक्ति परिणामवाद
और शंकराचार्य कहा विवर्तवाद
विवर्तवाद ब्रह्मसत्यं जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापर:
जीव ही ब्रह्म है
यह भगवान की आज्ञा से ही
महादेव ने शंकराचार्य रूप से सृष्टि वर्धन करने के लिए मायावाद का प्रचार किया
लेकिन स्वयं भगवान का भजन करते हैं
और गीता का जो महात्म्य हैं
हम बोला था वहाँ पर, आपको बैंगलोर में
जो वो लोग कहते हैं जो शंकराचार्य
का जो विचार है मायावाद का खंडन नहीं करना
ठीक है खंडन नहीं करेंगे
लेकिन शंकराचार्य ने गीता का महात्म्य लिखा
गीता के महात्म्य में क्या लिखा?
वहाँ पर जो
भगवान के मुख से ही गीता निकली
गीता कहाँ से निकली?
भगवान के मुख से निकली
भगवान उवाच, भगवान उवाच तो है ही
लेकिन यह तो महात्म्य आखरी में लिखा
वो वही वहाँ पर लिखा है
जो
गीता की जो महिमा है, वहाँ पर महिमा में लिखा
पहले श्लोक का क्या है
सर्वोपनिषद गावो यह तो है इसका ऊपर में और एक है
गीता सुगीता कर्तव्य
गीता सुगीता कर्तव्य किम् अन्यैः शास्त्र-विस्तारैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुख पद्माद्विनि: सृता।।
गीता सुगीता कर्तव्य
गीता सु सुंदर रूप से गान करते हैं, भक्ति से
कौन कहते हैं? शंकराचार्य
गीता सुगीता कर्तव्य किमन्ये: शास्त्र विस्तरै:।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुख पद्माद्विनि: सृता।। पद्मनाभ मुख
कृष्ण के मुख से
विनिःसृत या स्वयं पद्मनाभास्य
गीता सुगीता कर्तव्य य स्वयं पद्मनाभास्य विनिःसृत
किम् अन्यैः शास्त्र-विस्तारैः और शास्त्र की क्या जरुरत हैं?
वही गीता पढ़ने से तो सब हो जाता है
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः।
पार्थो वत्सः सुधिर भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्॥
यह जो है ना
यहाँ पर कहते हैं सर्वोपनिषदो गावो तमाम उपनिषद गाय के माफिक हैं
और उनको दोहन किया कौन?
गोपालनंदन; गोपालनंदन कौन है
कृष्ण
और बछड़ा नहीं रहने से दोहन करेगा कैसे?
बछड़ा कौन है? अर्जुन
दोहन किया दुग्ध अमृत
कहते कौन यह महात्म्य किसने लिखा?
शंकराचार्य ने लिखा
इसलिए कहते हैं उन्होंने स्वयं इस विषय में लिखा
लिखके फिर स्वयं कहते हैं
भगवान की आज्ञा से मायावाद का प्रचार किया सृष्टि वर्धन के लिए
भज गोविंदं भज गोविंदं भज गोविंदं मूढ़मते।
जो गोविन्द का भजन नहीं करते हैं वो मूढ़ है
स्वयं भजन किया
इसलिए वो जो है
वेदव्यास मुनि ने जो बोला शक्ति परिणामवाद
यह ठीक है, कैसे ठीक है समझना होगा
विवर्तवाद ठीक नहीं है
यह रस्सी पड़ी है हम भ्रम से देखा सांप
भ्रम एक,
एक सत्ता को ले आना पड़ा यह जगत,
जगत मिथ्या, जगत का कोई अस्तित्त्व नहीं है
ब्रह्म सत्य
कैसे जगत मिथ्या हुआ? यह भ्रम है
भ्रम तो मैं.. जीव ही जब ब्रह्म है
ब्रह्म का भ्रम होने से वो ब्रह्म नहीं रहते हैं
जीव और ब्रह्म तो एक ही है
ऐसा बोलते हैं वे लोग
जीव तो जिसका भ्रम होता है वो कैसे ब्रह्म हो गया?
इस प्रकार बहुत कितनी मुश्किल आएगी
शक्ति परिणामवाद करने से वो कहते हैं शक्ति परिणामवाद कहने से
शक्ति जब परिणाम होता है वो भगवान भी विकारी हो जाते हैं
इसलिए भगवान को निर्विकार रखने के लिए विवर्तवाद ठीक है
बोलते हैं नहीं वेदव्यास मुनि ने जो बोला वो ठीक है
शक्ति परिणाम होने से भी
भगवान विकारी नहीं होते हैं
जैसे स्पर्शमणि philosophical stone
स्पर्शमणि में कोई धातु संयुक्त होने से वो सोना हो जाती है
वह शक्ति उसके अंदर में है
वो स्वयं निर्विकार रहती है
एक स्पर्शमणि जड़ वस्तु, उसके अंदर अचिन्त्य शक्ति रहती है
भगवान अपनी शक्ति को विभिन्न रूप से परिणत करते हुए
स्वयं निर्विकार रहते हैं
बहिरंग शक्ति से अनंत ब्रह्माण्ड
जीव शक्ति से अनंत जीव
चित् शक्ति से अनंत वैकुण्ठ कर के स्वयं निर्विकार रहते हैं
शक्ति परिणामवाद यह जो वेदव्यास मुनि ने कहा
कैसे ठीक है समझना पड़ेगा
यह…
यहाँ पर लिखा है
इसको कल…