श्रीगजेन्द्र उवाच
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम्।
योऽस्मात् परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम्॥
य: स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्वचिद् विभातं क्व च तत् तिरोहितम्।
अविद्धदृक् साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्ममूलोऽवतु मां परात्पर:॥
कालेन पञ्चत्वमितेषु कृत्स्नशो
लोकेषु पालेषु च सर्वहेतुषु।
तमस्तदासीद् गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेऽभिविराजते विभु:॥
न यस्य देवा ऋषय: पदं विदु-
र्जन्तु: पुन: कोऽर्हति गन्तुमीरितुम्।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमण: स मावतु॥
by reading running without any purpose ..this I do not like
this sort of reading I do not like
it is not beneficial for me, not beneficial to others
so it is not desire
of Supreme Lord, I should continue this sort of
he is directing me to one place
not in this room
that perhaps, he is directing me because my physical body is not so capable now
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमङ्गलं
विमुक्तसङ्गा मुनय: सुसाधव:।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने
भूतात्मभूता: सुहृद: स मे गति:॥
this we.. we have to do with…
try to do it from the core of the heart
so that we can get the grace of
Krishna… get the grace of the Supreme Lord
as Gajendra has got… but with that
at least try to do this
this stava if you cannot do it
then what for we are reading this
useless
only to finish it somehow
this I do not like
for this, we have not renounced our house
only we are seeing the comforts of the body and nothing else
सुसाधु, त्यक्तसंग, सर्वप्राणीते समदर्शी सुहृद मुनिगण
जाँहार सुमंगल पददर्शन करिवार वासनाय
अरण्य अक्षत व्रत ब्रह्मचर्य व्रताचरण करेन
सेई भगवान आमार आश्रय हउन
नहीं मिलते हैं अपनी चेष्टा से नहीं दर्शन होता है
यह गजेन्द्र ने कहा
मुनि ऋषि और देवता लोग नहीं पाते हैं
लेकिन पा सकते हैं, जब भागवत व्रत भक्ति व्रत
शुद्ध भक्त
शुद्ध भक्त भक्ति से भगवान को प्राप्त कर सकते हैं
दूसरा कोई उपाय तो नहीं है
नहीं प्राप्त कर सकता है ऐसा नहीं, अपनी चेष्टा से हम लोग नहीं प्राप्त कर सकते हैं
उनको नहीं जान सकते हैं
उनके चरणों में शरणागत हो जाएँगे
जब शरणागत होकर भक्ति करेंगे
वही भक्ति से भगवान को प्राप्त कर सकते हैं