मन रे, तुमि बड़ संदिग्ध-अन्तर। असियाछ ए संसारे, बद्ध हये जड़ाधारे, जड़ासक्त ह’ले निरन्तर॥1॥ मेरे प्रिय मन, तुम अत्यन्त सन्दिग्ध हो। इस भौतिक जगत् में आकर विषय-वस्तुओं के द्वारा बद्ध हो गए हो। इस प्रकार से तुम निरंतर आसक्त रहते हो। भूलिया स्वकीय धाम, सेवि’ जड़-गत काम, जड़ बिना ना देख अपर। तोमार तुमित्व जिनि, … Continue reading मन रे, तुमि बड़ संदिग्ध-अन्तर।
ajnana-timirandhasya jnananjana-salakaya caksur-unmilitam yena tasmai sri guruve namah [“Obeisances to Sri Gurudeva who has opened our sealed eyes, blinded by the darkness of ignorance, with the spike of the collyrium of knowledge.”] Today is the day of the worship of Sri Guru, and I have come here today for this purpose. I am a … Continue reading A Lecture by Srila Prabhupad on His Vyasa Puja
मैंने कभी ऐसा सोचा भी नहीं था कि हमारे परम गुरुजी (श्रील प्रभुपाद) की आविर्भाव तिथि में, व्यास पूजा के उपलक्ष्य में पंजाब, लुधियाना में आऊँगा। दैव से हो गया। साधारणतः इस समय मेरा यहाँ आना होता नहीं है। किन्तु भगवान की इच्छा के बिना पेड़ का एक पत्ता भी नहीं हिलता है। इसलिए यह … Continue reading जगद्गुरु श्रील प्रभुपाद आविर्भाव तिथि-पूजा
व्रजे आवेशरुपत्वाद्वयूहो योऽपि सदाशिवः। स एवाद्वैतगोस्वामी चैतन्याभिन्न विग्रहः॥ (गौ. ग. दी. 76) जो व्रज के आवरण रूप से नियुक्त है तथा जो सदाशिव व्यूह नाम से प्रसिद्ध है-वे ही अद्वैत गोस्वामी जी हैं। आप श्रीचैतन्य महाप्रभु जी से अभिन्न शरीर हैं। यश्र्च गोपालदेहः सन् व्रजे कृष्णस्य सन्निधौ। ननर्त्त श्रीशिवातन्त्रे भैरवस्य वचो यथा॥ एकदा कार्तिक मासि … Continue reading श्रीअद्वैत आचार्य
वृषभानुतनया ख्यातः पुरा यो व्रजमण्डले। अधुना पुण्डरीकाक्षो विद्यानिधि महाशयः॥ स्वकीय भावमास्वाद्य- राधा विरह कातरः। चैतन्यः पुण्डरीकाक्षमये तातावदत् स्वयम्॥ प्रेमनिधितया ख्यातिं गौरो यस्मै ददौ सुखी। माधवेन्द्रस्य शिष्यत्वात् गौरवञ्च सदाकरोत्॥ तत्प्रकाशविशेषोऽपिमिश्रः श्रीमाधवो मतः। रत्नावतीतु तत्पत्नी कीर्त्तिदा कीर्त्तिता बुधैः॥ (गौ. ग. दी. 54-57) अर्थात् पहले जो व्रजमण्डल में वृषभानु रूप से विख्यात थे, वही महाशय इस समय श्रीचैतन्य … Continue reading श्रील पुण्डरीक विद्यानिधि
श्रीसनातनमिश्रोऽयं पुरा सत्राजितो नृपः। विष्णुप्रिया जगन्माता यत् कन्या भू-स्वरूपिणी॥ (गौ.ग.दी. 47) पूर्वकाल में जो राजा सत्राजित थे, वही दूसरे जन्म में श्रीसनातन मिश्रा नाम से पैदा हुए हैं। जगन्माता भूस्वरूपिणी-विष्णु प्रिय जी, उन्हीं की कन्या हैं। यदुवंश के राजा सत्राजित की कन्या सत्यभामा से श्रीकृष्ण ने विवाह किया था। गौरलीला में राजा सत्राजित श्रीसनातन मिश्र … Continue reading श्रीविष्णु प्रिय देवी
दास श्रीरघुनाथस्य पूर्वाख्या रस मंजरी। अमुं केचित् प्रभाषंते श्रीमती रति मंजरीम्।। भानुमत्याख्या केचीदाहुस्तं नाम भेदत :।। (गौ.ग.दी. १८६) कृष्णा लीला में जो रस मंजरी, मतान्तर में रति मंजरी अथवा भानुमती (सखी परिचारिका दुती) हैं, श्रीगौर लीला में वे ही श्रीरघुनाथ दास गोस्वामी के रूप में प्रकट हुई हैं। अनुमानत : शक सम्वत् १४१६में … Continue reading श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी
श्रील रघुनन्दन ठाकुर व्यूहस्तृतीय: प्रद्युम्न: प्रियनर्म सखो¿भवत् । चक्रे लीला सहायं यो राधा माधवयोर्व्रजे । श्रीचैतन्याद्वैत तनु: स एव रघुनन्दन: । (गौर. ग. 70) प्रद्युम जी तृतीय व्यूह के हैं। इन्होंने कृष्ण के प्रियनर्म सखा होकर व्रज में श्रीराधामाधव जी की लीला में सहायता की थी। वे प्रद्युम जी ही इस समय श्रीचैतन्य के अभिन्न … Continue reading श्रील रघुनन्दन ठाकुर
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26 जनवरी गुरुवार बसंत पंचमी ।
गौर-शक्ति श्रीविष्णुप्रिया देवी जी का आविर्भाव। सरस्वती पूजा। श्रील पुण्डरीक विद्यानिधि, श्रीलरघुनाथ दास गोस्वामी एवं श्रील रघुनन्दन ठाकुर जी का आविर्भाव। श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी का तिरोभाव। श्रीश्रील प्रभुपादनुकम्पित त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद् भक्ति विवेक भारती गोस्वामी महाराज जी तथा त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद् भक्ति स्वरूप पर्वत गोस्वामी महाराज जी का तिरोभाव। पूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद् भक्ति कमल गोविन्द महाराज जी का आविर्भाव।