02. दिव्या लीलाअमृत

भक्तों के साथ उनके कुछ अंतिम विशेष आदान-प्रदान
दूसरों की निंदा के विरुद्ध में उनकी कड़ी चेतावनी
उत्तम शब्दों द्वारा वैष्णवों का महिमा कीर्तन
वे घनीभूत वात्सल्य प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं
भक्ति का प्रसार भक्ति से ही होता है
आचरण के द्वारा प्रचार
श्रीव्रजधाम में कार्तिक व्रत
वास्तविक गुरु-पूजा
तथाकथित छोटे-छोटे क्षणों में कई उत्कृष्ट शिक्षाएँ

दिन में दो बार श्रील गुरुदेव के सार्वजनिक दर्शन होते थे- १) दोपहर में, जब वे तुलसी परिक्रमा के लिए बाहर आते, और २) संध्या आरती के बाद, उनकी भजन कुटीर में उनके दर्शन के ये दिव्य क्षण उनसे उच्चतम शिक्षा प्राप्त करने के लिए सुनहरे अवसर होते थे। ऐसे समय में, भक्तों के साथ उनके मधुर वार्तालाप को ध्यान से सुनकर या उनके अद्भुत व्यवहार को ध्यान से देखकर, एक सौभाग्यशाली व्यक्ति उनके मन के दिव्यत्व को और उनकी विचारों की उत्तमता को कुछ सीमा तक अनुभव कर सकता था। इन तथाकथित छोटे-छोटे क्षणों में कई उच्चतम शिक्षाएँ छुपी हुई रहती थीं । जो व्यक्ति उन उपदेशों के वास्तविक अर्थ को समझ सकता, वह अवश्य ही रोमांचित हो जाता और, उन उपदेशों के पीछे श्रील गुरुदेव के उत्कृष्ट दृष्टिकोण को अवलोकन करके बस आश्चर्यचकित हो जाता।

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सेवकों के साथ कुछ सौहार्दपूर्ण क्षण

यहाँ पर हमें विशेष रूप से जानना चाहिए कि श्रील गुरुदेव की यह दिनचर्या उनके अस्वस्थ लीला के समय की थी। उन्होंने वैष्णवों के अनुरोधों और चिकित्सकों की सलाह को विनम्रता से स्वीकार करते हुए, अपने दैनिक कार्यक्रम को परिवर्तन किया। पूर्व काल में, वे अरुणोदय से पहले ही उठ जाते और मंगल आरती, सुबह के कीर्तन और पाठ में उपस्थित रहते। अपने स्नान के बाद वे लम्बे समय तक स्तव आदि कर मंत्र जप करते। जलपान करने के बाद, वे भक्तों के साथ मिलने और उनसे वार्तालाप करने, प्रचार कार्यक्रम, ‘श्रीचैतन्य वाणी’ मासिक पत्रिका के लिए लेख लिखने, ग्रन्थ लिखने, हरिनाम जप, भक्तों के पत्रों का उत्तर देने और अन्य सेवा कार्यों में पूरा दिन व्यस्त रहते। वे रात को बहुत देर तक सेवा कार्य करते तथा उन्हें विश्राम करते-करते लगभग १:३० बज जाते थे। इसके बावजूद, वे अचूक मंगल आरती में उपस्थित रहते थे।

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अपरिमेय कृतज्ञता भाव

कुछ वर्ष पहले, श्रील गुरुदेव कोलकाता में और चाकदह, कृष्णनगर और मायापुर जैसे उसके आसपास के क्षेत्रों में स्थानीय टैक्सी या सार्वजनिक परिवहन (bus, local train इत्यादि) से प्रचार के लिए जाते थे। यह देखकर जम्मू के श्रीमदनलाल गुप्ता ने बहुत श्रद्धा के साथ एक नीली टाटा सफारी कार को २००४ में उनकी सेवा में दिया था। तब से श्रील गुरुदेव उसी कार से यात्रा करने लगे। यद्यपि जब यह कार खरीदी गई थी तब यह एक अच्छा model था, फिर भी पिछले सात वर्षों में कई प्रकार की आधुनिक और सुविधाजनक कार व्यवहार में आ चुकीं थीं। और अब कार के shock absrorbers और pickup भी इतने अच्छी अवस्था में नहीं रहें ।

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सेवा कार्यों में उनकी तत्परता

अगले दिन श्रील गुरुदेव का सुबह का जलपान होने के बाद, मैंने श्रीमाधवप्रिय प्रभु के इस अनुरोध को उनके समक्ष प्रस्तुत किया। मैंने उनसे यह भी कहा कि इस कार्य के लिए पर्याप्त समय है क्योंकि पत्रिका को प्रकाशित होने में अभी दो मास का समय है। महाराजश्री के स्वास्थ्य के बारे में मुझसे पूछने के बाद उन्होंने कहा कि वे निश्चित रूप से उनके लिए कुछ स्नेह भरे शब्द लिखना चाहते हैं। जलपान के बाद उनकी दिनचर्या के अनुसार वे स्टडी टेबल के पास जाकर बैठ गए, और मैं उनकी भजन कुटीर से बाहर आ गया।

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एक उत्तम प्रशासक
भक्तों की भावना ही उनके लिए सर्वोपरि है
एक निपुण चिकित्सक

एक समय, श्रीमद् भक्ति प्रसून मधुसूदन महाराज श्रील गुरुदेव के दर्शन के लिए कोलकाता आए। वे मुझे बहुत स्नेह करते हैं। इसलिए एक दिन दर्शन के समय, उन्होंने मेरी ओर इंगित करते हुए श्रील गुरुदेव से कहा, “गुरुजी! कृपया आप इन पर अपनी विशेष कृपा बनाए रखें। ये उच्च शिक्षित और बहुत निष्ठावान व्यक्ति हैं। और आपकी सेवा के लिए अच्छी नौकरी छोड़कर आए हैं। कृपया आप इन पर आशीर्वाद करें ताकि ये आपकी सेवा में बने रहें।”

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जीवों के प्रति उनकी विशुद्ध एवं अहैतुकी कृपा

एक दिन दोपहर को, जब श्रील गुरुदेव अपनी आराम-कुर्सी (easy chair) पर विश्राम की मुद्रा में थे, तब ‘जीव-तत्त्व’ से सम्बंधित एक प्रश्न मैंने उनके सामने पढ़ा। प्रश्न सुनते ही, वे सजग हो गए और उन्होंने अपनी पीठ को सीधा कर लिया। उन्होंने राजा भरत के जीवन-चरित्र से उस प्रश्न का उत्तर देना आरम्भ किया। उन्होंने कहा कि राजा भरत ने हरिभजन करने के लिए अपने राज्य और परिवार को छोड़कर वानप्रस्थ ग्रहण किया था।

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अपने गुरुदेव के महिमा वर्णन में उनकी तीव्र आसक्ति
आचार्य-कुल के मुकुटमणि