10. विरह में सेवा

12. जहाँ अन्यों की समस्त चेष्टाएँ समाप्त, उनकी चेष्टा प्रारम्भ
11. एक फटे-पुराने कम्बल का गुरुत्व
10. श्रील प्रभुपाद के वचनों को पूर्ण करना
9. उन्होंने लक्ष्मी को दूर भेज दिया
8. गुरु महाराज के प्रति उनके गुरुभ्राता की सम्मानजनक भावना
7. सभी के सुखों के लिए वास्तविक चिन्ता
6. मिथ्या आरोपों को सहन करना
5. गौड़ीय मठ के विभाजन पर एक परमोत्कृष्ट दृष्टिकोण
4. सभी को प्रत्येक परिस्थिति में श्रील प्रभुपाद की सेवा हेतु प्रोत्साहित करना
3. तृणादपि सुनीचेन तरोरिव सहिष्णुना
2. शिष्य स्वीकार कर श्रील प्रभुपाद की सेवा
1. सेवा ही सन्यास का सार