Gaudiya Acharyas

श्रीकालिया कृष्णदास (काला कृष्णदास)


“प्रसिद्ध कालिया कृष्णदास त्रिभुवने।
गौरचरण लभ्य हय याँहार स्मरणे॥” (चै॰भा॰आ॰ 5/740)
“काल: श्री कृष्णदास: स यो लवंग: सखा ब्रजे”
(गौ॰ग॰दी॰ 132)
ये द्वादश गोपालों में से एक श्रीलवंग सखा थे। इनका पीठ स्थान,आकाईहाट ग्राम में था। यह ग्राम वर्द्धमान ज़िले के काटोया थाना और डाकघर के अन्तर्गत नवद्वीप काटोया मार्ग के पीछे की ओर है। ये काटोया स्टेशन से दो मील तथा दाँईहाट स्टेशन से एक मील दूरी पर स्थित है। इसी स्थान पर काला कृष्णदास ठाकुर जी का नूपुर कुण्ड भी विद्यमान है। किसी-किसी के मत में खण्डवासी भक्त श्रीमुकुन्द के पुत्र श्रीरघुनन्दन ठाकुर का तथा किसी अन्य के मत में श्रीनित्यानन्द प्रभु जी का नूपुर इस कुण्ड में गिरा था।
श्रीभक्ति सिद्धान्त सरस्वती ठाकुर महाराज श्रीचैतन्य चरितामृत के अनुभाष्य में लिखते हैं कि-
पावना ज़िला के अन्तर्गत सुप्रसिद्ध वेड़ा बन्दरगाह से प्राय: तीन मील दूरी व पश्चिम में इच्छामती नदी के किनारे स्थित सोनातला ग्राम के निवासी ‘गोस्वामी’ महाशय गणों के मतानुसार काला कृष्णदास ठाकुर जी वारेन्द्र श्रेणी के कुल में उत्पन्न हुए थे तथा ये भरद्वाज गोत्री व भादड़ गाँव के निवासी थे। आकाईहाट से काला कृष्णदास ठाकुर जी हरिनाम प्रचार हेतु पावना में आए थे। जिस स्थान पर इन्होंने आश्रम बनाया था, उस मैदान में अब भी तब के मकानों के खण्डहरों के चिह्न हैं। बाद में इसी स्थान में इनकी जाति के अन्य लोग भी आ गए थे। आकाईहाट में वारेन्द्र ब्राह्मण न होने की वजह से इन्होंने इधर ही विवाह कर लिया तथा कुछ दिनों के बाद दोबारा आकाईहाट व वृन्दावन की ओर गमन कर गये।
इनके दो पुत्र थे- श्रीमोहन दास, तथा श्रीगौरांग दास। श्रीगौरांग दास का दूसरा नाम श्रीवृन्दावन दास भीथा। इनके वंशधर अब भी पावना ज़िला के सोनातला ग्राम में हैं। सोनातला ग्राम में कृष्णा द्वादशी को काला कृष्णदास ठाकुर जी का तिरोभाव उत्सव मनाया जाता है। इन के द्वारा सेवित श्रीविग्रह का नाम श्रीकाला चाँद जी है।
सोनातला के पीठ स्थान का वास्तु स्थान (a homestead), मन्दिर की ईंटें और पुष्पकरिणी के घाट अब भी नज़र आते हैं।
“राढ़े याँर जन्म कृष्णदास द्विजकर।
श्रीनित्यानन्देर तिंहो परम किंकर॥
काला कृष्णदास बड़ वैष्णव प्रधान।
नित्यानन्द चन्द्र बिना नाहि जाने आन॥”
(चै॰च॰आ॰ 11/36-37)
(अर्थात् राढ़ में जिनका जन्म हुआ था वे कृष्णदास द्विजवर श्रीनित्यानन्द प्रभु के अति प्रिय सेवक थे। श्रीकाला कृष्णदास वैष्णवाग्रगणी थे। ये श्रीनित्यानन्द जी के बिना किसी को नहीं जानते थे अर्थात् इनके सर्वस्व नित्यानन्द जी ही थे)।
श्रीजाह्नवा देवी के नवद्वीप धाम से काटोया (कंटक नगर) आने के समय भक्तों के साथ काला कृष्णदास जी भी थे-
“आकाइ हाटेर कृष्णदास सहित।
कंटक नगरे सबे हैला उपनीत॥” (भक्ति रत्नाकर 10/409)
महाप्रभु जी की दक्षिण भारत की यात्रा के समय जो काला कृष्णदास जी महाप्रभु के कोपीन व बहिर्वास तथा जल पत्र को सम्भालते थे, जिसको कि श्रीनित्यानन्द जी ने महाप्रभु जी के साथ दिया था – वे काला कृष्ण दास जी इन काला कृष्ण दास जी से अलग हैं – ऐसा श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती जी ने श्रीचैतन्य चरितामृत की मध्य लीला के 7/39 पयार के भाष्य में लिखा है।